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क्या है अखिलेश का क्लस्टर फॉर्मूला, जिसने उन्हें यूपी में बना दिया मैन ऑफ द मैच, 20 साल बाद सपा को मिली सबसे बड़ी जीत

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क्या है अखिलेश का क्लस्टर फॉर्मूला, जिसने उन्हें यूपी में बना दिया मैन ऑफ द मैच, 20 साल बाद सपा को मिली सबसे बड़ी जीत लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव का फार्मूला PDA (पीडीए) रहा. करीब सात महीने पहले उन्होंने इसकी घोषणा की थी. पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक को साथ लेकर चुनाव में उतरने की योजना बनी. इसी फार्मूले पर अखिलेश यादव ने टिकट बांटे. इस बार ‘MY’ वाले सालों पुराने सामाजिक समीकरण को तिलांजलि दे दी गई. पहली बार रिजल्ट के दिन अखिलेश यादव अपने घर पर ही रहे. एक बार भी वे समाजवादी पार्टी ऑफिस नहीं गए, पर लगातार वे पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से संपर्क में रहे. अपने घर से ही लगातार निर्देश देते रहे. ये सिलसिला देर रात तक चलता रहा. फर्रुखाबाद में समाजवादी पार्टी करीब दो हजार वोटों से हार गई. पार्टी के कार्यकर्ताओं को लगा गड़बड़ी की गई है. अखिलेश ने ही सबको शांत कराया. करीब 32 साल पुरानी समाजवादी पार्टी का लोकसभा चुनाव में सबसे बेहतर प्रदर्शन रहा है. अखिलेश यादव के नेतृत्व में पार्टी ने 38 सीटें जीत ली. साल 2004 के चुनाव में समाजवादी पार्टी को 35 सीटें मिली थीं. तब मुलायम सिंह यादव पार्टी के कर्ताधर्ता थे. लगातार चार चुनावों में हार के बाद अखिलेश यादव के नेतृत्व पर सवाल उठने लगे थे, पर इस बार के लोकसभा चुनाव में वही अखिलेश यादव मैन ऑफ द मैच हैं. अकेले अपने दम पर उन्होंने बीजेपी को बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने से रोक दिया. इस बार के चुनाव के लिए अखिलेश यादव का फार्मूला रहा PDA (पीडीए). करीब सात महीने पहले उन्होंने इसकी घोषणा की थी. पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक को साथ लेकर चुनाव में उतरने की योजना बनी. अखिलेश को लगा कि अल्पसंख्यक के नाम पर बीजेपी मुसलमानों की आड़ में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कर सकती है. फिर उन्होंने PDA के A को कभी अगड़ा बताया तो कभी आधी आबादी मतलब महिलाएं. इसी फार्मूले पर अखिलेश यादव ने टिकट बांटे. इस बार ‘MY’ वाले सालों पुराने सामाजिक समीकरण को तिलांजलि दे दी गई. मुस्लिम और यादव तो हर हाल में समाजवादी पार्टी के साथ रहेंगे. इस सोच के आधार पर अखिलेश यादव ने इस बार के चुनाव में अपनी रणनीति बदल ली. गैर यादव पिछड़ों और दलितों पर रहा फोकस अखिलेश यादव का पूरा फोकस अब गैर यादव पिछड़ों और दलितों पर आ गया. ये कोशिश उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में भी की थी. लेकिन इस बार सोशल इंजीनियरिंग करते समय अखिलेश ने क्लस्टर फार्मूला लगा दिया. मतलब हर इलाके के लिए एक अलग सामाजिक समीकरण बनाया. लोकसभा की एक सीट पर पटेल उम्मीदवार दिया तो बगल वाली सीटों पर आबादी के हिसाब से कहीं निषाद तो कहीं बिंद तो कहीं कुशवाहा प्रत्याशी दिए. सोशल इंजीनियरिंग का ये डबल डोज सुपरहिट रहा. मेनका गांधी के खिलाफ उन्होंने गोरखपुर से लाकर निषाद उम्मीदवार दे दिया. राम भुआल निषाद ने सुल्तानपुर में मेनका गांधी को हरा दिया. इसी तरह के कई प्रयोग अखिलेश ने किए.   फैजाबाद लोकसभा सीट सुरक्षित नहीं है. लेकिन यहां उन्होंने एक दलित नेता अवधेश पासी को टिकट दे दिया. अयोध्या भी फैजाबाद लोकसभा सीट में है. राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को बीजेपी ने बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया था. लेकिन फैजाबाद में कुछ और ही नारे लग रहे थे. न अयोध्या न काशी, अबकी बार अवधेश पासी. समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार अवधेश प्रसाद पासी बिरादरी के हैं. फैजाबाद के बगल वाली अंबेडकर नगर सीट पर कुर्मी और सुल्तानपुर में निषाद कैंडिडेट था. पिछड़े, अति पिछड़े और दलित समाज के साथ मुसलमान और यादव समाज के लोगों ने फैजाबाद से अवधेश प्रसाद की जीत पक्की कर दी.  बीजेपी ने सामाजिक समीकरण का विस्तार करने के लिए यूपी में चार पार्टियों के साथ गठबंधन किया है. जाट वोट के लिए आरएलडी, निषाद वोट के लिए निषाद पार्टी, राजभर वोट के लिए सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और पटेल कुर्मी वोट के लिए अपना दल. पिछले विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने भी इसी तरह का फार्मूला बनाया था. पर इस बार उनकी रणनीति बदल गई थी. बाहरी के बदले उन्होंने अपने को आजमाने की तैयारी कर ली थी. पल्लवी पटेल ने उनका साथ छोड़ दिया था. ऐसे में अखिलेश यादव ने इस बार गैर यादव पिछड़ी बिरादरी के लोगों को दिल खोल कर टिकट दिया. पटेल कुर्मी समाज के 10 कुशवाहा – शाक्य -सैनी बिरादरी के 6 नेताओं को टिकट दिया. इसी तरह निषाद जाति के 5 उम्मीदवार दिए. दलितों में उन्होंने पासी बिरादरी के 7 और जाटव समाज के 6 नेताओं को टिकट दिए. मायावती जाटव बिरादरी से हैं. यूपी के 11 प्रतिशत जाटव पिछले कई सालों से मायावती को वोट करते रहे हैं. पर अखिलेश यादव ने इस बार इन पर दॉंव लगाया और वे कामयाब भी रहे. संविधान बदलने का मुद्दा बीजेपी पर पड़ा भारी बीजेपी ने अखिलेश यादव को अपने गेम में फंसाने की बहुत कोशिशें की. राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में क्यों नहीं जायेंगे. इस पर बहुत विवाद हुआ. लेकिन चुनाव में ये बीजेपी का ये दांव नहीं चला. अखिलेश यादव लगातार अपने पिच पर डटे रहे. बेरोजगारी, मंहगाई, पेपरलीक के मुद्दे उठाते रहे. आंटा के साथ डेटा मुफ्त में देने का वादा करते रहे. बीजेपी के चार सौ पार के नारे को अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने संविधान बचाने की लड़ाई बना दी. गांव-गांव तक ये बात फैल गई कि बीजेपी की सरकार बनी तो फिर संविधान बदल जाएगा. दलितों और पिछड़ों का आरक्षण खत्म हो सकता है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कई बार सफाई दी. लेकिन ये बात लोगों के दिमाग में घर कर चुकी थी. यही वजह है कि मायावती के वोटरों ने भी अखिलेश यादव का साथ दे दिया. यूपी की राजनीति में ये एक बड़ी टर्निंग प्वाइंट है. आकाश आनंद के एपिसोड के बाद बीएसपी की छवि कुछ हद तक बीजेपी की ‘बी’ टीम की बन चुकी थी. ऐसे में कांग्रेस से गठबंधन ने सोने में सुहागे का काम किया

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Author: questionsnews

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